समाज में कट्टरपंथ कितना बढ़ चूका है उस का अंदाजा आप नहीं लगा सकते है , १६०३ में जो अभिव्यक्ति की छुट थी , २०१३ में वो नहीं है ! ये अपमान जनक है वो आपत्ति जनक है , फेसबुक से हटा लो नहीं तो। … अच्छा हुआ "कबीर" चले गए , अच्छा हुआ "रूमी" चले गए। .अजीब पागलपन छाया हुआ है , । कठमुल्लों के विरुद्ध कहो तो बेवकूफ मुसलमान नाराज। । पोंगा पंडितो के विरुद्ध कहो तो हिंदुत्व आग बबूला , जब सभी इतने अच्छे है तो कमीने दंगाई कहाँ से पैदा हो जाते है
मंगल गृह पर बहता पानी सब को नजर आता है , मगर बेबस इंसानों का चीखता लहू किसी को नजर नहीं आ रहा है , ऐसा लगता है की विश्व भर के देशो से ये सहमती हुई है की तुम अपने आँखों को बंद कर लेना जब जब इंसानियत
चीखे ,.मीडिया जो कहे, उद्द्योग्पति जो कहें ,मैं भेड़ चाल या उनके जाल में नहीं फंसता .एक कसौटी मुझे विरासत में
मिली है जिसकी परख दूध का दूध और पानी का पानी कर देती है चाहे महात्मा के जितने भी मुखौटे पहने, नाथूराम दिख जाता है , जब वो राम के रथ पर सवार था तब भी दिखाई दे गया ,जब सत्याग्रह का ढोंग कर रहा था तब भी दिखाई दे गया .कब तक बहरूपिया छुपता फिरेगा? केवल औपचारिकता रह गई है वरना नाथूराम तो बिलकुल नंगा हो चुका है , संविधान के दुश्मन, देश की एकता और अखंडता के दुश्मन ,इंसानियत के दुश्मन, राम और रहीम के दुश्मन . सुदामा और शबरी की ज़मीन छीन कर रामभक्ति का ढकोसला कितने दिन और टिकेगा? मैंने विरासत में मिली कसौटी अब इन्टरनेट पर बाँट डाली है .महात्मा आज भी आदरणीय है, और नाथूराम गाली है !!!
हम पोटली में बंधे हुए गढ़े की तरह है ....पोटली में बंधे हुए चिकने घड़े मिलते हैं, अगर पोटलियों को खोल भी दें तो पक्के घड़ों का क्या करें? पुरानी कहानियां सुना सुना के हजारों साल के ज़ख्मो को हरा रखने की कोशिश में, आज के समाज कल्याण की आहुति दी जा रही है। समाज बदलता है, टेक्नॉलोजी बदलती है, मनुष्य अब गुफाओं और क़बीलों से निकल रहा है। शिवाजी की लड़ाई, राणा प्रताप की जुंग, अकबर का उत्थान, औरंगजेब का पतन, टीपू सुलतान की तलवार, महाभारत की रणभूमि, यजीद का ज़ुल्म, धर्म युद्ध, सिकंदर का राज, भगत सिंह की कुर्बानी ...इन सब बातो का हम कब तक सहारा लेंगे हैं। इन्हें दुश्मनी को बढ़ाने का माध्यम न बनाया जाय। न अब वो अंग्रेजी शासनकाल है, न चंदगुप्त मौर्य का समय, न मुग़ल शासनकाल , आज पोटलियों में बंद पक्के घड़ों की आवश्यकता नहीं है, आज की चुनौतियाँ अलग हैं, आज विश्व में एकता और भाईचारे की ज़रुरत है। ऐसे लोगों की ज़रुरत है जो दूसरों के साथ जोड़े जा सकें, जैसे कपड़ों के टुकड़े जोड़ कर चादर बनाई जाती है। केरल का हिन्दू और राजस्थान का हिन्दू अलग होता है, लखनऊ का शिया और अज़रबैजान का शिया अलग है, हैदराबाद का सुन्नी और सऊदी अरब का सुन्नी अलग है, साइप्रस का इसाई और डेनमार्क का इसाई अलग है, तिब्बत का बौद्ध और बर्मा का बौद्ध अलग है। सब को एक जैसा सोचना सबके बारे में एक जैसी धारणा बना लेना मूर्खता है।
अगर पुरानीबातो को आज के युग में दुश्मनी और राजनीती के लिए दुरुपोग करेंगे तो विनाश ही विनाश है।
जबतक दुनिया के हर बच्चे, हर नारी, हर युवा हर बूढों का कल्याण, बिना किसी भेदभाव के नहीं सोचा जाय, तबतक विश्व शांति नहीं स्थापित हो सकती। मेरे लिए कोई भी लड़ाई जिहाद/धर्मयुद्ध नहीं है, किसी की भी मौत केवल दुःख का ही सन्देश है, चाहे किसी पुलिसवाले की मौत हो, चाहे नक्सल्वादी की, चाहे पाकिस्तान का सिपाही मर रहा हो या हिन्दुस्तान का। मौत को खेल नहीं बनाइये, भटके हुए लोगों को पोटली से निकलने का रास्ता दिखाइए।
आज जो कुछ भी हो रहा है, घर में, पड़ोस में, या पूरे विश्व में, जहाँ-जहाँ भी लोग लड़ रहे हैं, उन्हें रोकना ज़रूरी है।
कौन सही है कौन ग़लत इस चक्कर में आप भी पोटली में बंद हो जायेंगे।
सभी न्यायधीश नहीं बन सकते, मानवाधिकार का हनन करने वालों को सभी को स्वीकार होने वाले, निष्पक्ष न्यायलय में सजा होनी चाहिए ... विश्व के हर बच्चे को न्यायतंत्र पर पूरा भरोसा दिलाना होगा, हथियार का व्यापार मौत का व्यापार है, इसे जल्द से जल्द बंद करना होगा। केवल इसी में जनमानस का कल्याण है, बाकी सब प्रकृति के विरुद्ध अपराध है।
हमारे पास प्रतिभा है परन्तु उसका क्या फायदा , हम उसका उपयोग कब और किसके लिए करेंगे , जब हम खुद अपने ही घरो को तोड़ने में लगे हुए है ... हम चाँद को देख कर दुआ मांगते रह गए। वो चाँद पर फ़तह हासिल कर आये। हम उनकी हर फ़तह के बाद किताबों में ढूंढ कर सच्चाई तो तोड़ मरोड़ कर उनकी कामयाबी पर अपना सिक्का जमाने लगे। अब वो सूरज तक पहुँचने की बात कर रहे हैं। हम उनके बनाये हुए फ़ोन पर बातें बना रहें हैं। किसी को घमंड है की शून्य हमने बनाया था, कोई अलजेब्रा के ग़ुरूर में मस्त है। हक़ीक़त ये है कि हम अव्वल दर्जे के गधे हैं। दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई, हम वहीँ के वहीँ पड़े हैं। दीवारों के बाहर निकलिए, गधों के शिकंजों से आज़ाद हो जाइये। वरना आनेवाले वक़्त में आपको कुछ समझ में नहीं आएगा कि सिर्फ़ आप से गधों की तरह सामान ढोने का काम क्यों लिया जा रहा है। ... सब के कारण हम आप खुद है
A GREAT LINE BY RIZVI -
लाशों का ढेर पड़ा था, बलात्कार करने के बाद सैकड़ों बच्चियों को जला भी दिया गया था।
मीलों दूर तक बदबू फैल रही थी, इसलिए सरकार ने बदबू फैलाती लाशों और कातिलों के सबूतों को जलाने/दफ़नाने का काम शुरू कर दिया था।
पीड़ित या तो मर जाते हैं, या डर के मारे खामोश हो जाते हैं।
समाचार टीआरपी निचोड़ने के बाद फेंक दिए जाते हैं।
गिद्ध भोजन देख कर लाशो पर मंडराते हैं।
मारने वाले क़ातिल, शूरवीर लौह-पुरुष बन कर वोट बटोरने निकल जाते हैं।
मरने वालों के गढ़ में कुछ नेता घड़ियाली आंसू बहाने निकल जाते हैं।
घड़ियाल, लौह-पुरुष क़ातिल, गिद्ध.... तब तक उन लाशों की बोटियों को नोचते रहते हैं जबतक कि उन लाशों से वोट रिसता रहता है।
इनमे से किसी को किसी भी इंसान के जाने से या इंसानियत के जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
नारे बदल दिए जाते हैं, डेवलपमेंट उजागर किये जाते हैं।
समस्त विश्व के पीड़ित लाचार होकर भगवान् से गुहार कर रहे हैं।
भगवान् है भी या नहीं कौन जानता? अगर इन्साफ वहां भी नहीं मिला तो न यहाँ के रहेंगे न वहां के।
उम्मीद पर दुनिया टिकी है, इन्साफ का इंतज़ार है,
इन्साफ नहीं मिला तो आन्दोलन पर विश्वास करने वाला गाँधी
इस बार नमक नहीं, हथियार उठा लेगा !!!
सरपट भागती ज़िन्दगी में ज़रूरी हो गया है कि घोड़े की आँखों पर लगे ब्लिंकर्स अपनी आँखों पर लगा लिए जाएँ
मैंने भी आज वही ब्लिंकर्स पहन कर सोचा कि
"हैप्पी इंडिपेंडेंस डे" वाली बधाई दे दी जाये
मगर के झरोखे से सड़क पर बैठी "वह तोड़ती पत्थर" दिखाई दे गई
स्वतंत्रता दिवस पर पानी फिर गया
चीखती बच्चियों की पुकार गूंजने लगी मेरे कानो में
गुजरात के जले हुए अरमान
कश्मीर की वादियों में गोलियों के शिकार जवान
आफ़्स्पा तले दबी मणिपुर की महिलाएं
ठाकुरों की ठुकराई पीड़िता
तालिबानों की शिकार खून में लथपथ मलाला
शिव सेना, राम सेना, जमात-ए-इस्लामी के बजरंगियों द्वारा प्रताड़िता
चारदीवारों में घुटती परिवार की इज्ज़त पर चढ़ती बलि की बकरियां
वहशी के हवस की शिकार
तेज़ाब में नहलाया हुआ विकृत प्यार
दरोगा जी को जिस्म की रिश्वत देती हुई लाचार
कुपोषण से चरमराई हड्डियों पर "ब्यूटी कॉन्शिअस" होने का आरोप
कचरे में पड़ी कुत्तों का आहार बनती कराहती नवजात
भ्रूण-अवस्था में गर्भ से निकाल फेंकी जाने वाली मनहूस
दुनिया की सबसे पहली दासी
वीरता पदक से सम्मानित पुलिस अफसर की शिकार आदिवासी
"सोनी सूरी" जिसकी कोख में पत्थर ठूंस दिया गया
और इस पल जब आप मेरा "हैप्पी इंडिपेंडेंस दिवस" का सन्देश पढ़ रहे थे
ठीक उसी समय भारत में हो रहे बलात्कार और यौन उत्पीड़न की लम्बी लिस्ट में पचास नाम और बढे हुए दिखाई दे रहे हैं , उन सारे गुमनाम नाम को मेरा हैप्पी इंडिपेंडेंस दिवस मुबारक हो !
मैं पांच हज़ार साल से जीवित सभ्यता की उपज हूँ , मैं राम महावीर बुद्ध नानक ख़ुसरो कबीर की धरती पर पैदा हुआ हूँ
मेरी रगों में वफादारी और प्रेम का लहू दौड़ रहा है , मेरी धड़कनो में ब्रह्मनाद गूंजता है
जमुना किनारे कृष्ण की बंसी से लेकर, गंगा किनारे बिस्मिल्लाह की शहनाई , मेरी गंगा-जमुनी तहज़ीब का जश्न मनाती आई है, मेरे पूर्वज इसी पावन मिट्टी में दफ़्न हैं ,मैंने सजदे किये हैं इसी धरती पर ,मगर चाहते हुए भी मैं गर्व से सर नहीं उठा सकता क्योंकि मुझे अपना नाम छुपाना पड़ा है दंगाइयों से बचने के लिए
मुझे अपने ही वतन में घर नहीं मिलता क्योंकि मेरा नाम मेरी पहचान समाज को स्वीकृत नहीं है
मजबूर हूँ मैं भेड़ बकरियों की तरह झुंड में रहने के लिए ..मेरी टोपी मेरी दाढ़ी मेरी बहनों के पहनावे ने आपका क्या बिगाड़ा है? सर्दी की कोहरी सुबह में ठिठुरते हुए छब्बीस जनवरियों की प्रभातफेरी याद आती है
कैनवास जूते को मेरी माँ ने चॉक से चमकाया था ताकि पंद्रह अगस्त वाली ईद में कोई कमी न रह जाए
एनसीसी के लिबास पर पीतल को ब्रास्सो से चमकाता था क्यूंकि उस वर्दी में मुझे अपने देश का उज्जवल भविष्य दिखाई देता था जब विजयी विश्व तिरंगा प्यारा लहराता था
तो मस्तक ऊंचा और आँखें नम हुआ करती थीं सन सत्तावन से लेकर अड़तालीस तक की कुर्बानियां याद आती थीं
आज न जाने क्यों तिरंगे को देखता हूँ तो आँखे किसी अन्य कारणवश नम हो जाती हैं
मेरे बचपन वाला भारत, मेरे सपनो वाला सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान, अच्छा क्यों नहीं लगता?
मुझे घृणा और शक की नज़र से क्यों देखा जाता है? मेरी पहचान मेरा नाम मेरे मौलिक अधिकार के आड़े क्यों आ जाता है? मेरा संविधान केवल पन्नो में सीमित क्यों रह जाता है?
जब मेरे देश की वर्दी, मेरा तिरंगा, संविधान के दुश्मनों की अर्थी को सलामी देता है और समाज आवाज़ तक नहीं उठाता, विचलित हो जाता है मन वर्दी पर से भरोसा डगमगाने लगा है
ढूंढ रहा हूँ जन गण के मंगलदायक भारत को जिसकी जय जयकार गुरुदेव ने की थी
भारतीयता की कसौटी पर खरा उतरते उतरते घिस गया है मेरा विश्वास .. उम्मीद की एक डोर बंधी है आज भी
सिर्फ इसलिए कि इन्साफ के मंदिर पर लिखा है "सत्यमेव जयते"
YO UR EYELASHES WILL WRITE ON MY HEART THE POEM THAT COULD NEVER COME FROM THE PEN OF POET , I PROMISE I WILL TAKE REVENGE BUT NOT LIKE MEN BY GUN AND SWORD AND AGGRESSION INSTEAD I WILL WRITE .... :'( :'(
THANK YOU
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मंगल गृह पर बहता पानी सब को नजर आता है , मगर बेबस इंसानों का चीखता लहू किसी को नजर नहीं आ रहा है , ऐसा लगता है की विश्व भर के देशो से ये सहमती हुई है की तुम अपने आँखों को बंद कर लेना जब जब इंसानियत
चीखे ,.मीडिया जो कहे, उद्द्योग्पति जो कहें ,मैं भेड़ चाल या उनके जाल में नहीं फंसता .एक कसौटी मुझे विरासत में
मिली है जिसकी परख दूध का दूध और पानी का पानी कर देती है चाहे महात्मा के जितने भी मुखौटे पहने, नाथूराम दिख जाता है , जब वो राम के रथ पर सवार था तब भी दिखाई दे गया ,जब सत्याग्रह का ढोंग कर रहा था तब भी दिखाई दे गया .कब तक बहरूपिया छुपता फिरेगा? केवल औपचारिकता रह गई है वरना नाथूराम तो बिलकुल नंगा हो चुका है , संविधान के दुश्मन, देश की एकता और अखंडता के दुश्मन ,इंसानियत के दुश्मन, राम और रहीम के दुश्मन . सुदामा और शबरी की ज़मीन छीन कर रामभक्ति का ढकोसला कितने दिन और टिकेगा? मैंने विरासत में मिली कसौटी अब इन्टरनेट पर बाँट डाली है .महात्मा आज भी आदरणीय है, और नाथूराम गाली है !!!
हम पोटली में बंधे हुए गढ़े की तरह है ....पोटली में बंधे हुए चिकने घड़े मिलते हैं, अगर पोटलियों को खोल भी दें तो पक्के घड़ों का क्या करें? पुरानी कहानियां सुना सुना के हजारों साल के ज़ख्मो को हरा रखने की कोशिश में, आज के समाज कल्याण की आहुति दी जा रही है। समाज बदलता है, टेक्नॉलोजी बदलती है, मनुष्य अब गुफाओं और क़बीलों से निकल रहा है। शिवाजी की लड़ाई, राणा प्रताप की जुंग, अकबर का उत्थान, औरंगजेब का पतन, टीपू सुलतान की तलवार, महाभारत की रणभूमि, यजीद का ज़ुल्म, धर्म युद्ध, सिकंदर का राज, भगत सिंह की कुर्बानी ...इन सब बातो का हम कब तक सहारा लेंगे हैं। इन्हें दुश्मनी को बढ़ाने का माध्यम न बनाया जाय। न अब वो अंग्रेजी शासनकाल है, न चंदगुप्त मौर्य का समय, न मुग़ल शासनकाल , आज पोटलियों में बंद पक्के घड़ों की आवश्यकता नहीं है, आज की चुनौतियाँ अलग हैं, आज विश्व में एकता और भाईचारे की ज़रुरत है। ऐसे लोगों की ज़रुरत है जो दूसरों के साथ जोड़े जा सकें, जैसे कपड़ों के टुकड़े जोड़ कर चादर बनाई जाती है। केरल का हिन्दू और राजस्थान का हिन्दू अलग होता है, लखनऊ का शिया और अज़रबैजान का शिया अलग है, हैदराबाद का सुन्नी और सऊदी अरब का सुन्नी अलग है, साइप्रस का इसाई और डेनमार्क का इसाई अलग है, तिब्बत का बौद्ध और बर्मा का बौद्ध अलग है। सब को एक जैसा सोचना सबके बारे में एक जैसी धारणा बना लेना मूर्खता है।
अगर पुरानीबातो को आज के युग में दुश्मनी और राजनीती के लिए दुरुपोग करेंगे तो विनाश ही विनाश है।
जबतक दुनिया के हर बच्चे, हर नारी, हर युवा हर बूढों का कल्याण, बिना किसी भेदभाव के नहीं सोचा जाय, तबतक विश्व शांति नहीं स्थापित हो सकती। मेरे लिए कोई भी लड़ाई जिहाद/धर्मयुद्ध नहीं है, किसी की भी मौत केवल दुःख का ही सन्देश है, चाहे किसी पुलिसवाले की मौत हो, चाहे नक्सल्वादी की, चाहे पाकिस्तान का सिपाही मर रहा हो या हिन्दुस्तान का। मौत को खेल नहीं बनाइये, भटके हुए लोगों को पोटली से निकलने का रास्ता दिखाइए।
आज जो कुछ भी हो रहा है, घर में, पड़ोस में, या पूरे विश्व में, जहाँ-जहाँ भी लोग लड़ रहे हैं, उन्हें रोकना ज़रूरी है।
कौन सही है कौन ग़लत इस चक्कर में आप भी पोटली में बंद हो जायेंगे।
सभी न्यायधीश नहीं बन सकते, मानवाधिकार का हनन करने वालों को सभी को स्वीकार होने वाले, निष्पक्ष न्यायलय में सजा होनी चाहिए ... विश्व के हर बच्चे को न्यायतंत्र पर पूरा भरोसा दिलाना होगा, हथियार का व्यापार मौत का व्यापार है, इसे जल्द से जल्द बंद करना होगा। केवल इसी में जनमानस का कल्याण है, बाकी सब प्रकृति के विरुद्ध अपराध है।
हमारे पास प्रतिभा है परन्तु उसका क्या फायदा , हम उसका उपयोग कब और किसके लिए करेंगे , जब हम खुद अपने ही घरो को तोड़ने में लगे हुए है ... हम चाँद को देख कर दुआ मांगते रह गए। वो चाँद पर फ़तह हासिल कर आये। हम उनकी हर फ़तह के बाद किताबों में ढूंढ कर सच्चाई तो तोड़ मरोड़ कर उनकी कामयाबी पर अपना सिक्का जमाने लगे। अब वो सूरज तक पहुँचने की बात कर रहे हैं। हम उनके बनाये हुए फ़ोन पर बातें बना रहें हैं। किसी को घमंड है की शून्य हमने बनाया था, कोई अलजेब्रा के ग़ुरूर में मस्त है। हक़ीक़त ये है कि हम अव्वल दर्जे के गधे हैं। दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई, हम वहीँ के वहीँ पड़े हैं। दीवारों के बाहर निकलिए, गधों के शिकंजों से आज़ाद हो जाइये। वरना आनेवाले वक़्त में आपको कुछ समझ में नहीं आएगा कि सिर्फ़ आप से गधों की तरह सामान ढोने का काम क्यों लिया जा रहा है। ... सब के कारण हम आप खुद है
A GREAT LINE BY RIZVI -
लाशों का ढेर पड़ा था, बलात्कार करने के बाद सैकड़ों बच्चियों को जला भी दिया गया था।
मीलों दूर तक बदबू फैल रही थी, इसलिए सरकार ने बदबू फैलाती लाशों और कातिलों के सबूतों को जलाने/दफ़नाने का काम शुरू कर दिया था।
पीड़ित या तो मर जाते हैं, या डर के मारे खामोश हो जाते हैं।
समाचार टीआरपी निचोड़ने के बाद फेंक दिए जाते हैं।
गिद्ध भोजन देख कर लाशो पर मंडराते हैं।
मारने वाले क़ातिल, शूरवीर लौह-पुरुष बन कर वोट बटोरने निकल जाते हैं।
मरने वालों के गढ़ में कुछ नेता घड़ियाली आंसू बहाने निकल जाते हैं।
घड़ियाल, लौह-पुरुष क़ातिल, गिद्ध.... तब तक उन लाशों की बोटियों को नोचते रहते हैं जबतक कि उन लाशों से वोट रिसता रहता है।
इनमे से किसी को किसी भी इंसान के जाने से या इंसानियत के जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
नारे बदल दिए जाते हैं, डेवलपमेंट उजागर किये जाते हैं।
समस्त विश्व के पीड़ित लाचार होकर भगवान् से गुहार कर रहे हैं।
भगवान् है भी या नहीं कौन जानता? अगर इन्साफ वहां भी नहीं मिला तो न यहाँ के रहेंगे न वहां के।
उम्मीद पर दुनिया टिकी है, इन्साफ का इंतज़ार है,
इन्साफ नहीं मिला तो आन्दोलन पर विश्वास करने वाला गाँधी
इस बार नमक नहीं, हथियार उठा लेगा !!!
सरपट भागती ज़िन्दगी में ज़रूरी हो गया है कि घोड़े की आँखों पर लगे ब्लिंकर्स अपनी आँखों पर लगा लिए जाएँ
मैंने भी आज वही ब्लिंकर्स पहन कर सोचा कि
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मगर के झरोखे से सड़क पर बैठी "वह तोड़ती पत्थर" दिखाई दे गई
स्वतंत्रता दिवस पर पानी फिर गया
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कश्मीर की वादियों में गोलियों के शिकार जवान
आफ़्स्पा तले दबी मणिपुर की महिलाएं
ठाकुरों की ठुकराई पीड़िता
तालिबानों की शिकार खून में लथपथ मलाला
शिव सेना, राम सेना, जमात-ए-इस्लामी के बजरंगियों द्वारा प्रताड़िता
चारदीवारों में घुटती परिवार की इज्ज़त पर चढ़ती बलि की बकरियां
वहशी के हवस की शिकार
तेज़ाब में नहलाया हुआ विकृत प्यार
दरोगा जी को जिस्म की रिश्वत देती हुई लाचार
कुपोषण से चरमराई हड्डियों पर "ब्यूटी कॉन्शिअस" होने का आरोप
कचरे में पड़ी कुत्तों का आहार बनती कराहती नवजात
भ्रूण-अवस्था में गर्भ से निकाल फेंकी जाने वाली मनहूस
दुनिया की सबसे पहली दासी
वीरता पदक से सम्मानित पुलिस अफसर की शिकार आदिवासी
"सोनी सूरी" जिसकी कोख में पत्थर ठूंस दिया गया
और इस पल जब आप मेरा "हैप्पी इंडिपेंडेंस दिवस" का सन्देश पढ़ रहे थे
ठीक उसी समय भारत में हो रहे बलात्कार और यौन उत्पीड़न की लम्बी लिस्ट में पचास नाम और बढे हुए दिखाई दे रहे हैं , उन सारे गुमनाम नाम को मेरा हैप्पी इंडिपेंडेंस दिवस मुबारक हो !
मैं पांच हज़ार साल से जीवित सभ्यता की उपज हूँ , मैं राम महावीर बुद्ध नानक ख़ुसरो कबीर की धरती पर पैदा हुआ हूँ
मेरी रगों में वफादारी और प्रेम का लहू दौड़ रहा है , मेरी धड़कनो में ब्रह्मनाद गूंजता है
जमुना किनारे कृष्ण की बंसी से लेकर, गंगा किनारे बिस्मिल्लाह की शहनाई , मेरी गंगा-जमुनी तहज़ीब का जश्न मनाती आई है, मेरे पूर्वज इसी पावन मिट्टी में दफ़्न हैं ,मैंने सजदे किये हैं इसी धरती पर ,मगर चाहते हुए भी मैं गर्व से सर नहीं उठा सकता क्योंकि मुझे अपना नाम छुपाना पड़ा है दंगाइयों से बचने के लिए
मुझे अपने ही वतन में घर नहीं मिलता क्योंकि मेरा नाम मेरी पहचान समाज को स्वीकृत नहीं है
मजबूर हूँ मैं भेड़ बकरियों की तरह झुंड में रहने के लिए ..मेरी टोपी मेरी दाढ़ी मेरी बहनों के पहनावे ने आपका क्या बिगाड़ा है? सर्दी की कोहरी सुबह में ठिठुरते हुए छब्बीस जनवरियों की प्रभातफेरी याद आती है
कैनवास जूते को मेरी माँ ने चॉक से चमकाया था ताकि पंद्रह अगस्त वाली ईद में कोई कमी न रह जाए
एनसीसी के लिबास पर पीतल को ब्रास्सो से चमकाता था क्यूंकि उस वर्दी में मुझे अपने देश का उज्जवल भविष्य दिखाई देता था जब विजयी विश्व तिरंगा प्यारा लहराता था
तो मस्तक ऊंचा और आँखें नम हुआ करती थीं सन सत्तावन से लेकर अड़तालीस तक की कुर्बानियां याद आती थीं
आज न जाने क्यों तिरंगे को देखता हूँ तो आँखे किसी अन्य कारणवश नम हो जाती हैं
मेरे बचपन वाला भारत, मेरे सपनो वाला सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान, अच्छा क्यों नहीं लगता?
मुझे घृणा और शक की नज़र से क्यों देखा जाता है? मेरी पहचान मेरा नाम मेरे मौलिक अधिकार के आड़े क्यों आ जाता है? मेरा संविधान केवल पन्नो में सीमित क्यों रह जाता है?
जब मेरे देश की वर्दी, मेरा तिरंगा, संविधान के दुश्मनों की अर्थी को सलामी देता है और समाज आवाज़ तक नहीं उठाता, विचलित हो जाता है मन वर्दी पर से भरोसा डगमगाने लगा है
ढूंढ रहा हूँ जन गण के मंगलदायक भारत को जिसकी जय जयकार गुरुदेव ने की थी
भारतीयता की कसौटी पर खरा उतरते उतरते घिस गया है मेरा विश्वास .. उम्मीद की एक डोर बंधी है आज भी
सिर्फ इसलिए कि इन्साफ के मंदिर पर लिखा है "सत्यमेव जयते"
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